मेवाड़ राजवंश का एक लंबा और शानदार इतिहास रह है, इसमें एक सहस्राब्दी से अधिक समय तक शासकों की वंशावली रही है। मेवाड़ राजवंश मुख्य रूप से सिसोदिया वंश के राजपूतों से जुड़ा हुआ है, जिन्होंने चित्तौड़गढ़, उदयपुर और अन्य स्थानों से शासन किया। नीचे मेवाड़ के प्रमुख राजाओं की सूची दी गई है, हालांकि अलग-अलग ऐतिहासिक विवरणों में कालक्रम और नाम थोड़े भिन्न हो सकते हैं:
मेवाड़ के प्रारंभिक शासक (गुहिल वंश)
- गुहिल (6वीं शताब्दी ईस्वी) – गुहिल वंश के संस्थापक।
- बप्पा रावल (734–753) – मेवाड़ की प्रमुखता स्थापित की और चित्तौड़गढ़ को राजधानी बनाया।
- खुमाण (753–773)
- मत्तट (773–793)
- भर्तृभट्ट प्रथम (793–813)
- सिंह (813–828)
- खुमाण प्रथम (828–853)
- महायक (853–878)
- खुमाण द्वितीय (878–942)
- भर्तृभट्ट द्वितीय (942–943)
- अल्लट (943–953)
- नरवाहन (953–971)
- शालिवाहन (971–973)
- शक्तिकुमार (973–977)
- अंबा प्रसाद (977–993)
- सुचिवर्मा (993–1007)
- नरवर्मा (1007–1021)
- कीर्तिवर्मा (1021–1035)
- योगराज (1035–1040)
- वैराट (1040–1053)
- हंसपाल (1053–1068)
- वैरिसिंह (1068–1088)
- विजयसिंह (1088–1103)
- अरि सिंह प्रथम (1103–1133)
- चौहान अंतराल (1133–1172) – इस दौरान मेवाड़ चौहान शासन के अधीन था।
- कर्ण सिंह (1172–1179) – गुहिल शासन को पुनर्स्थापित किया।
सिसोदिया वंश (12वीं शताब्दी के बाद)
- महाप (1179–1191)
- कुमार सिंह (1191–1211)
- मथन सिंह (1211–1227)
- पदम सिंह (1227–1234)
- जैत्र सिंह (1234–1261)
- तेज सिंह (1261–1273)
- समर सिंह (1273–1301)
- रतन सिंह (1301–1303) – अलाउद्दीन खिलजी के खिलाफ चित्तौड़गढ़ की घेराबंदी में लड़े।
- राणा हम्मीर सिंह (1326–1364) – चौहान अंतराल के बाद मेवाड़ की गौरवगाथा को पुनर्जीवित किया।
- राणा क्षेत्र सिंह (1364–1382)
- राणा लखा (1382–1421)
- राणा मोकल (1421–1433)
- राणा कुंभा (1433–1468) – मेवाड़ के सबसे महान शासकों में से एक।
- राणा उदय सिंह प्रथम (1468–1473)
- राणा रायमल (1473–1509)
- राणा सांगा (1509–1527) – बाबर के खिलाफ खानवा की लड़ाई में लड़े।
- राणा रतन सिंह द्वितीय (1528–1531)
- राणा विक्रमादित्य (1531–1536)
- राणा उदय सिंह द्वितीय (1537–1572) – उदयपुर शहर की स्थापना की।
- महाराणा प्रताप (1572–1597) – अकबर के खिलाफ हल्दीघाटी की लड़ाई में लड़े।
- महाराणा अमर सिंह प्रथम (1597–1620) – जहांगीर के साथ संधि पर हस्ताक्षर किए।
- महाराणा करण सिंह द्वितीय (1620–1628)
- महाराणा जगत सिंह प्रथम (1628–1652)
- महाराणा राज सिंह प्रथम (1652–1680) – औरंगजेब की नीतियों का विरोध किया।
- महाराणा जय सिंह (1680–1698)
- महाराणा अमर सिंह द्वितीय (1698–1710)
- महाराणा संग्राम सिंह द्वितीय (1710–1734)
- महाराणा जगत सिंह द्वितीय (1734–1751)
- महाराणा प्रताप सिंह द्वितीय (1751–1754)
- महाराणा राज सिंह द्वितीय (1754–1761)
- महाराणा अरि सिंह द्वितीय (1761–1773)
- महाराणा हम्मीर सिंह द्वितीय (1773–1778)
- महाराणा भीम सिंह (1778–1828)
- महाराणा जवान सिंह (1828–1838)
- महाराणा सरदार सिंह (1838–1842)
- महाराणा स्वरूप सिंह (1842–1861)
- महाराणा शंभू सिंह (1861–1874)
- महाराणा सज्जन सिंह (1874–1884)
- महाराणा फतेह सिंह (1884–1930)
- महाराणा भूपाल सिंह (1930–1955) – मेवाड़ के अंतिम शासक महाराणा।
स्वतंत्रता के बाद
1947 में भारत की आजादी के बाद, मेवाड़ भारतीय संघ का हिस्सा बन गया, और राजपरिवार की भूमिका औपचारिक हो गई। मेवाड़ राजवंश के वंशज आज भी प्रभावशाली हैं, और उदयपुर का सिटी पैलेस उनकी विरासत का प्रतीक बना हुआ है।
यह सूची मेवाड़ के सबसे प्रमुख शासकों को शामिल करती है, हालांकि कुछ छोटे शासक और संक्रमणकालीन अवधि इसमें शामिल नहीं हो सकते हैं। मेवाड़ राजवंश को उनकी साहसिकता, वीरता और भारतीय इतिहास एवं संस्कृति में योगदान के लिए याद किया जाता है।